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इतिहास

वर्ष 1936 की 7 जुलाई, गुरु पूर्णिमा का पुनीत पावन दिन था,जब श्रीमती गीता बजाज ने अपनी बहन के जयपुर के मोती डूंगरी इलाक़े के नायब जी का बाग स्थित मकान, जिसके एक छोटे से किराये के कमरे में वे अपनी नन्ही सी पुत्री के साथ रहती थीं ,की छत पर समाज के दीन हीन तबके के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के पवित्र कार्य का शुभारंभ किया. इस महान कार्य के लिए उन्होंने सबसे पहले जयपुर के मोती डूंगरी क्षेत्र में रहने वाले दिहाड़ी मज़दूरों के 4-5 नन्हे मुन्ने बच्चे चुने ,उन्हें नहलाया धुलाया और फिर क ख ग और 1- 2- 3 पढ़ाना शुरू किया. वस्तुतः यह एक नितांत साधन हीन शुरुआत थी। गीता जी के पास उनकी दृढ़ शिक्षा इच्छाशक्ति और कुछ कर गुज़रने के जुनून के अलावा कुछ भी तो नहीं था. जब इस अकेली महिला ने बाधाओं और परिणामों की परवाह किए बिना, स्वतंत्र भारत में एक समर्पित सामाजिक जीवन की लंबी एवं दुष्कर यात्रा की शुरुआत की, उस समय वे रवींद्रनाथ टैगोर के उस संदेश का यथावत एवं अक्षरशः अनुसरण करने की कोशिश कर रही थीं , जो टैगोर ने अपने प्रेरक गीत “एकला चलो रे” में दिया था.

स्वर्गीय श्रीमती गीता बजाज एक महान देशभक्त तथा नेक विचारो वाली एक गतिशील समाज सुधारक और इस महान देश की एक सच्ची नागरिक थीं जिनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व हमें सदैव ही यह स्मरण दिलाता रहेगा कि एक साधारण व्यक्ति भी अपने जीवन को कितना उत्कृष्ट एवं उदात्त बना सकता है. उन्होंने अनगिनत बच्चों और महिलाओं की मानसिक सोच,जीवन की दिशा एवं नियति को बदल कर रख दिया, और उनकी वे मानस संतानें सादा जीवन,मानवीय मूल्यों तथा समाज सेवा के प्रति निष्ठा के उनके संदेश को आज भी सारे देश में और देश के बाहर भी फैला रहे हैं.

समर्पित समाज सेविका, गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी तथा शिक्षाविद के रूप में प्रतिष्ठित श्रीमती गीता बजाज 1936 में मात्र सत्रह साल की कच्ची उम्र में ही विधवा हो गयी थीं. उनके पति श्री गिरधारीलाल बजाज, सेठ जमनालाल बजाज के भतीजे थे,जिन्हें गांधीजी अपना पांचवां पुत्र कहते थे.

समर्पित समाज सेविका, गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी तथा शिक्षाविद के रूप में प्रतिष्ठित श्रीमती गीता बजाज 1936 में मात्र सत्रह साल की कच्ची उम्र में ही विधवा हो गयी थीं. उनके पति श्री गिरधारीलाल बजाज, सेठ जमनालाल बजाज के भतीजे थे,जिन्हें गांधीजी अपना पांचवां पुत्र कहते थे. इस पृष्ठभूमि के कारण गीता बजाज को उनके वैवाहिक जीवन की संक्षिप्त सी अवधि के दौरान, वर्धा आश्रम में गांधीजी के साथ रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ. तब तक गीताजी ने नाम मात्र की शिक्षा हासिल की थी- वे अपने गाँव के स्कूल में सिर्फ़ चौथी कक्षा तक पढ़ी थीं.

जन्मजात प्रतिभा संपन्न गीता जी को मिले गांधी जी के सान्निध्य ने उन्हें अपने व्यक्तित्व के अंदर झांकने, उसे बारीकी से समझने तथा उसका आंकलन करने की क्षमता प्रदान की . उनके अंदर सहज धैर्य, गंभीरता, समर्पण, कठोर परिश्रम तथा निस्वार्थ सेवा के गुण सहज ही विकसित होते चले गए. गांधीजी ने उनकी इन प्रवृत्तियों और गुणों को जान लिया था और यही कारण था कि उनके पति के असामयिक निधन पर भेजे गए गांधीजी के संवेदना पत्र में एक ऐसा असाधारण और अद्भुत संदेश समाहित रहा, जो गीता जी के व्यक्तित्व को पूरी तरह से नया रूप प्रदान करने वाला सिद्ध मंत्र साबित हुआ.

हमारे विभाग 

गीता बजाज बाल मंदिर संस्थान के अंतर्गत दो शिक्षण संस्थाएं चलती हैं - गीता बजाज बाल मंदिर सीनियर सेकेंडरी विद्यालय (राजस्थान उच्च माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त ) तथा गीता बजाज बाल मंदिर महिला शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय (राजस्थान विश्व विद्यालय एवं राष्ट्रीय टीचर्स एजुकेशन काउंसिल से मान्यता प्राप्त), जिनसे हम समाज की शिक्षण आवश्यकताओं को काफ़ी हद तक पूरा करने का प्रयास करते हैं.

प्रेरणा स्रोत : बापू का संवेदना-पत्र
श्रीमती गीता बजाज के पति गिरधारी लाल बजाज के निधन पर गीता जी को मिला बापू का पत्र, जो बाल एवं महिला शिक्षा के प्रति अपने जीवन को न्योछावर कर देने की प्रेरणा बन गया...


 

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